छेत्र में 45 डिग्री पारा छेत्रवासी हलाकान जिम्मेदार कौन दोपहर में पसरा सन्नाटा
छेत्र में 45 डिग्री पारा छेत्रवासी हलाकान जिम्मेदार कौन दोपहर में पसरा सन्नाटा बार बार का ध्यानाकर्षण फिर भी हर साल कट रहे हजारों हरे पेड (प्रकृति नें धरा रौद्र रूप,पारा 45 पार,पेड़ लगानें के साथ ही पेड़ बचाना भी होगा)
छेत्र में 45 डिग्री पारा छेत्रवासी हलाकान जिम्मेदार कौन दोपहर में पसरा सन्नाटा
बार बार का ध्यानाकर्षण फिर भी हर साल कट रहे हजारों हरे पेड
(प्रकृति नें धरा रौद्र रूप,पारा 45 पार,पेड़ लगानें के साथ ही पेड़ बचाना भी होगा)
खैरागढ़ छुईखदान गंडई :-,देखते ही देखते पारा पैंतालीस के पार होनें लगा है और आज जब बारिश होती है तो वह भी अपना रौद्र रूप लेकर आनें लगी है,गत कुछ वर्षो मे आकाशीय बिजली गिरने की तादाद में इजाफा दर्ज किया गया है,
मतलब साफ है कि कहीं न कही कुदरत हमसे क्रुद्ध है नाराज है और अब वह अपना रौद्र रूप धारण कर रही है हर जगह अलग अलग रूपों मे कहर ढा रही है कहना न होगा कि यही हाल रहा तो मानव जाति पर भविष्य का खतरा कोई कम नही है और इससे भी ज्यादा ध्यान देने योग्य यह है कि प्रकृति के इन सब कहर से आज भी इंसान कोई सबक नही ले रहा है अर्थात स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति का आज भी अंधाधुध दोहन,हरे वृक्षों की हलाक किया जाना,जीवन में कम से कम पांच पेड लगाकर उसे जवान किए जाने की सामाजिक और प्राकृतिक जवाबदारी से मानव का मुख मोड़ लेना आज के इन अनियंत्रित प्रकृति का प्रमुख कारण है।मौसम विभाग के द्वारा जनहित में जारी जानकारी के अनुसार आज प्रदेश में गर्मी औसतन 45 डिग्री के पार चल रहा है जिसमें राजधानी,न्यायधानी,संस्कारधानी सहित अन्य प्रमुख शहरों सहित नामचीन कस्बाई शहरो का अमूमन यही हाल बताया जा रहा है जिसमे राजधानी की तापमान 47 के पार बताया जा रहा है जिनके प्रमख कारण को गिना पाना असंभव लगता है।
(ग्रामीण अंचलों में अंधाधुध कौड़ियों के दाम पर जवान वृक्षों की कटाई )
एक जानकारी के मुताबिक शहरों में तो वैसे भी गिनती के पेड़ पाए जाते हैं,उसे भी सामाजिक संस्थाओ के द्वारा लगाया गया होता है या फिर शासन द्वारा पोषित होता है फिर भी शहरों में वृक्षों को काटने से लगभग शत प्रतिशत परहेज करते नजर आते हैं बल्कि कहना होगा कि वे वृक्षों को बचानें में ज्यादा जागरूक पाए जाते हैं परन्तु गांवों में हरे वृक्षों की भरमार की अपेक्षा की जाती है परन्तु अब मामला उल्टा दिखता है गत दस बीस बरसों में ग्रामीण अंचल के लगभग चालीस प्रतिशत नीम बबूल सहित अनेको वूक्षों को महज दो सौ से ढाई तीन सौ रूपयों के लिए कटवाकर कहीं ईट भट्ठों,होटलों,सहित विभिन्न कारणो ंसे बेच दिया जाता है आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष इसी विकासखंड क्षेत्र से लगभग आठ से दस हजार की तादाद में जवान हरे भरे वृक्षों को पैसा बनाने के नाम पर काट दिया जाता है और ढिगरा शहरो पर डाल दिया जाता है।
(वूक्षारोपण और उसके पोषण के प्रति उदासीन सामाजिंक ताना बाना )
प्रकूति के रौद्ररूप धारण करने के पीछे एक और कारण है कि पहले के जमानें में छोटे गांवों से लेकर शहरो तक बारिश के मौसम में प्रकृति के संरक्षण संवर्धन के लिए जीवन में कम से कम पांच पेड़ लगाकर उसे बड़ा किया जाना सामाजिक जवाबदारी होती थी कहा जाता था कि मानव को इन कर्मो के बिना उद्धार नही है अर्थात पौधारोपण और उसके संवर्धन को एक प्रकार से तीर्थयात्रा,दान,जपतप,हवन यज्ञ के जैसा ही दर्जा प्राप्त था परन्तु आज के व्यस्ततम जीवन,शहरी संस्कृति के अंधानुकरण ने इस परंपरा को भी प्रभावित किया है कहना न होगा कि यदि आज भी भारतीय समाज अपने प्राचीन जवाबदारियों को सख्ती से अपना ले तो आज भी प्रकृति को मनाया जा सकता है जिसके देश के भीतर कई उदाहरण है।
( जलसंवर्धन के प्रति जागरूकता )
पहले के जमानें में नदी या तालाब ही ग्रामीण,वनांचल से लेकर शहरों तक गर्मी के दिनों के लिए जल संवर्धन को सामाजिक परिवेश में बहुत ही महत्वपूर्ण मानाा जाता था परन्तु आज भी गांव से लेकर शहर तक जलसंवर्धन को पूरा महत्व दिया जाता था,परन्तु आज का परिवेश केवल सरकारी आासरे पर ही टिका दिया गया है जबकि अब जब आदमी मकान बनाता है तो वाटर हार्वेष्टिंग के नाम पर जल संवर्धन कर रहा है बताया जाता है कि यदि आज भी किसी ग्राम के लोग अपनें गांव में नलकूप न लगाकर कुआ का प्रयोग को प्राथमिकता दें तो उस गांव की भूमिगत जल के उत्थान किया जा सकता है।
( नरेगा में तालाब गहरीकरण के स्थान पर पेड़ लगाकर बड़ा किया जाना चाहिए)
वर्तमान में यह मांग शहरो से लेकर गांवों तक पूरे जोरशोर से उठ रही है कि ग्रामीण रोजगार के नाम पर केन्द्र शासन से लेकर राज्य शासन की ओर से गा्रमीण रोजगार गारंटी योजना के तहत विभिन्न कार्यो को अंजाम दिया जाता है जिसके तहत सबसे अधिक गौठान मुरमीकरण,स्थानीय तालाबो ंका गहरीकरण आदि प्रमुख है लोगों का मानना है कि यदि शासन रोजगार गारंटी के तहत अपने गांवों में पेड़ लगाने ंऔर उसका संवर्धन कर सुरक्षा प्रदान करते हुए बड़ा करने मे सफल हो जाती है तो निश्चित ही प्रकृति का वास्त
विक श्रृगार किए जाने मे आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की जा सकती है।
इस प्रकार से आज प्रकृति के भयानक स्वरूप के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है परन्तु अभी भी देर नही हुई है यदि प्रकृति के श्रृंगार के प्राकृतिक एवं सामाजिक स्वरूप को अपना लिया जाए तो वह दिन दूर नही जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।