कर्म फल का कोई निवारण नही जो जैसा करेगा उसको वैसा ही मिलेगा आचार्य नरेन्द्र नयन शास्त्री

कर्म फल का कोई निवारण नही जो जैसा करेगा उसको वैसा ही मिलेगा आचार्य नरेन्द्र नयन शास्त्री छुईखदान,,,,छुईखदान राजमहल मेँ पिछले आठ दिसंबर से शुरू हुये भागवत कथा मेँ कथा वाचक पंडित नरेन्द्र नयन शास्त्री (चाय वाले बाबा )ने कहाँ की जीवन मे जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्म ही कर्म है

कर्म फल का कोई निवारण नही       जो जैसा करेगा उसको वैसा ही मिलेगा    आचार्य नरेन्द्र नयन शास्त्री

कर्म फल का कोई निवारण नही                                                                                                                                                                   जो जैसा करेगा उसको वैसा ही मिलेगा    आचार्य नरेन्द्र नयन शास्त्री                                                                                छुईखदान,,,,छुईखदान राजमहल मेँ पिछले आठ दिसंबर से शुरू हुये भागवत कथा मेँ कथा वाचक पंडित नरेन्द्र नयन शास्त्री (चाय वाले बाबा )ने कहाँ की जीवन मे जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्म ही कर्म है,इसलिए हमे गुरू के मार्गदर्शन और शास्त्र सम्मत,धर्म सम्मत कर्तव्य का निर्वहन करते हुए अपना कर्म करना चाहिए, आप संसार से तो अपने दुष्कर्म, पाप, को छुपा सकते हो,पर ईश्वर से नही,और यही पाप आपके तन,मन,जीवन मे कठिनाईया, दुख तकलीफ लेकर आता है,जिसके निवारण के लिए आप इधर-उधर भटकते हो परन्तु याद रखना, जीवन पथ पर भूल, अज्ञानता के लिए क्षमा का स्थान है,कर्मो के निवारण का कोई उपाय नही है केवल भगवन्नाम ही एकमात्र सहारा होता है,इसलिए जीवन का हर कर्म यदि प्रभु को समर्पित करके करोगे तो यही कर्म सेवा बन जाएगा और आप भवसागर से पार उतर जाओगे।

     उपरोक्त उद्गार आज यहां छ ग के चौदह रियासतो मे से एक छुईखदान रियासत के मैरिज गार्डन प्रांगण मे आयोजित श्रीमद्भागवत कथा आयोजन के प्रमुख प्रवचन कर्ता त्रिकाल दर्शी और प्रमुख यजमान कुमार देवराज किशोर दास के गुरूदेव आचार्य नरेन्द्र नयन शास्त्री जी ने आज चौथे दिवस के कथा आयोजन के अवसर पर कही,आपने अपने कथा के माध्यम से वर्तमान सामाजिक परिवेश ,संस्कारो,सहित पारिवारिक परिवेश पर भी समान रूप से प्रकाश डालतै हुए समस्त माताओ पिता का आवाहन करते हुए अपने संतानो को सनातन अनुसार उत्तम संस्कार, ज्ञान, और धर्म अनुरूप चलने की शिक्षा देने की बात कही,उन्होने कहा कि बच्चो को माता पिता वृद्धो की सेवा का भी संस्कार देना होगा तभी समाज से वृद्धाश्रम बंद होगे।

          आपने अपने श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से वर्तमान विखंडित होते, सेवा और संस्कारो से दूर हटते परिवार और नवीन पीढ़ी को अपने जवाबदारियो का स्मरण कराने का प्रयत्न करते हुए कहा कि हमे कभी यह नही भूलना चाहिए कि घड़ी का काटा जो आज नीचे है कल फिर से ऊपर आएगा अर्थात जो आज युवा है वे भी कल बूढे होगे और उन्हे भी सहारे की जरूरत होगी,अतः हमे सदैव सत्कर्म सेवा संस्कार धर्म और अपने जीवन को आलोकित करने वाले गुरूओ, संतो भक्तो का सेवा और सम्मान करना चाहिए,वही पर स्वर्ग है,सम्पन्नता है,सुख है,आनंद है,उत्सव है।