हमें अपनें छोटे बच्चों की भावनाओं को समझना होगा कुंवर देवराज किशोर दास (छोटे राजा)

हमें अपनें छोटे बच्चों की भावनाओं को समझना होगा कुंवर देवराज किशोर दास (छोटे राजा) (गुडडे-गुड़ियों की शादी पंडाल में पहुच टिकावन भेंट किया कुंवर साहब नें ) अकती त्यौहार बच्चों के लिए उपहार बनकर आया

हमें अपनें छोटे बच्चों की भावनाओं को समझना होगा        कुंवर देवराज किशोर दास (छोटे राजा)

हमें अपनें छोटे बच्चों की भावनाओं को समझना होगा                       

कुंवर देवराज किशोर दास (छोटे राजा) 

 (गुडडे-गुड़ियों की शादी पंडाल में पहुच टिकावन भेंट किया कुंवर साहब नें )

अकती त्यौहार बच्चों के लिए उपहार बनकर आया 

छुईखदान =- कहने को अक्षय तृतीया का पर्व अत्यंत शुभ दिवस माना गया है पूरे देश में अक्षय तृतीया परशुराम जयंती आदि पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है विद्वानो गण बताते हैं कि इस दिन मांगलिक कार्यो के लिए किसी प्रकार की मुहूर्त देखनें की आवश्यकता नही है।,छ.ग.के कस्बाई और ग्रामीण अंचलों में इस दिन जहां बहुतायत में विवाह आदि मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं वहीं जिन परिवारों में विवाह के प्रसंग नही होते वहां की छोटी-छोटी बच्चीयां अपनें-अपनें घरों के सामनें गुडडे-गुड़ीयों के विवाह का पंडाल लगाकर शादी की रस्में पूरी करते हुुए मंडप सजाकर पूरे विवाह का आनंद लेती है,तथा समाज के बड़े बुजुर्गो से अपेक्षा रखती हैं कि हमारे बड़े गुडडे-गुंडिया की शादी में अवश्य उपहार देंगे,।हमें अपनें मोहल्ले गांव के इन छोटे छोटे बच्चों की भावनाओ का पूरा ख्याल रखना चाहिए तथा भरपूर कोशिश करनी चाहिए कि हमारे कारण उनका मन न टूटे उनकी भावनाओ को आज के परिवेश में हमें समझना होगा तभी हम स्वस्थ एवं खुशंहाल समाज की कल्पना कर सकते हैं।

                  उक्त बातें यहां रियासत के कुमार साहब देवराज किशोर दास जी(छोटे राजा) ने अक्षय तृतीया के अवसर पर नगर के विभिन्न मोहल्लों में लगे गुडडे-गुड़िया के वैवाहिक पंडालों में जाकर हर पंडाल में सम्मान जनक राशि टिकावन देकर बच्चों का उत्साह वर्धन करते हुए बच्चों को दहेज( टिकावन ) का एक रस्म (व्यवहार) अदा किया । जिसे लेकर बच्चों की खुशी दुगनी हो गई।  

                     श्री दास ने कहा कि ऐंसा माना जाता है बच्चों का मन अत्यंत कोमल और उत्साही होता है और जब वे छ.ग.की सांस्कृतिक धरोहर से जुडी़ परंपरा का स्वच्छ निर्वहन करते हुए अक्षय तृतीया के अवसर पर पंडालों को सजाते है उसमें मिट्टी के बनें गुडडे गुड़ियों का विवाह संपन्न कराते है तो मानों एैसा लगता है कि हमारे ही बच्चे पंडाल को सजाए है और इस नाते उपहार पर उनका सहज ही अधिकार हो जाता है यही कारण है कि हम अपने साथियों के साथ यथासंभव सभी पंडालों में जाकर अपने बच्चों का उत्साह वर्धन करें जिससे हमें आत्मिक सुख और शांति मिलतीी है।

         आपने आगे बताया कि छोटे बच्चो पर केंद्रीत एैसे तीज त्यौहारों पर समाज के एैसे सभी अवसरों पर हमें अपनें नीजी स्वार्थो और आवश्यकताओ व्यस्तताओं को परे रखकर बच्चों के साथ समय बीताना चाहिए तथा उनका उत्साहवर्धन करते रहना चाहिए जिससे हमें l

आत्मिक शांति मिलती है।श्री दास के साथ कमलेश यादव और उनके समर्थ क पुरे शहर में भ्रमण करते हुए बच्चों के पण्डालों में पहुंचकर व्यवहार देते रहे। जिसे लेकर नगरवासीयों ने कहा कि आज भी इस शहर में कोई तो है। जो तीज त्योहारों ने बच्चों के मन का ख्याल रखता है।